बुरहान वानी के सफाए के बाद रियाज नाइकू की मौत हिजबुल मुजाहिदीन के लिए सबसे बड़ा झटका है। उस समय बुरहान स्थानीय युवाओं को जोड़ने का चेहरा था। बाद में मूसा और नायकू यह चेहरे बन गए। ऐसे में नाइकू के मारे जाने से कश्मीर में हिजबुल के नेटवर्क पर निश्चित तौर पर गहरी चोट हुई है। ऐसे में उसका नया कैडर अन्य आतंकी संगठनों का दामन थाम सकता है। हिजबुल के शीर्ष पर हुए शून्य का फायदा टीआरएफ (द रजिस्टेंस फ्रंट), टीएमआइ (तहरीक-ए-मिल्लत-ए इस्लामी) और गजनवी फोर्स जैसे नए संगठनों के साथ-साथ अंसार गजवात-उल-हिंद (एजीएच) और इस्लामिक स्टेट(आइएस) को पहुंचेगा। वर्तमान हालात में पाकिस्तान भी इन्हें ही शह देगा।
जुलाई 2016 में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने से लेकर पुलवामा हमले जैसी हिंसा के बाद कश्मीर ने बड़े बदलाव देखे हैं। तीन सालाें में कश्मीर में हिजबुल, लश्कर और जैश जैसे आतंकी संगठनों को एक तरह से एजीएच और आइएस जैसे संगठनों से भी जूझना पड़ा। नए आतंकियों में से अधिकांश पाकिस्तान और हिजबुल के एजेंडे से आगे बढ़ कट्टर इस्लामीकरण की राह पकड़ चुके हैं। वह कश्मीर की आजादी के नारों और पाकिस्तान के समर्थन को छलावा बताते हैं।
वर्ष 2017 में हिजबुल के बागी जाकिर मूसा ने खुलेआम पाकिस्तान और उसके समर्थक आतंकी संगठनों के साथ-साथ कश्मीर के अलगाववादियों के खिलाफ जिहाद का एलान किया तो युवाओं को साथ जाेड़ने में सफल रहा। लश्कर और जैश के कई विदेशी आतंकी भी उसके साथ खड़े हुए। इनमें लश्कर का अबु दुजाना और जैश का अबु हमास प्रमुख हैं। ऐसे हालात में भी रियाज नाइकू हिजबुल का विभाजन रोकने में सफल रहा। उसने अल-कायदा की विचारधारा को नकारने का प्रयास करते हुए इसे भारतीय एजेंसियों की साजिश करार दिया। इसके साथ ही रियाज नायकू ने अपने कैडर के साथ विभिन्न आतंकी वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया। उसने पुलिसकर्मियों और सुरक्षाबलों के साथ-साथ उनके परिजनों को निशाना बनाया। उसने पंचायत प्रतिनिधियों के साथ साथ कश्मीर के कई नौकरशाहों को भी धमकियां दीं। उसने हर इलाके में हिजबुल के छोटे-छोटे दस्ते तैयार कर उनमें इलाकों काे भी बांटा। इसके साथ ही उसने एजीएच और इस्लामिक स्टेट में शामिल हुए हिजबुल के आतंकियों से संपर्क साधना शुरू किया। इसके साथ उसने लश्कर व जैश के साथ भी समन्वय बनाया और स्थानीय स्तर पर वित्तीय संसाधन जुटाना शुरू किया। इसके लिए उसने सोशल मीडिया का भी पूरा इस्तेमाल किया।
पुलवामा के बाद बढ़ गई थी चुनौतियां
पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को सीआरपीएफ के काफिले पर जैश के आत्मघाती हमले के बाद पाकिस्तान को दुनिया को दिखाने के लिए लश्कर,जैश व हिजबुल की गतिविधयों पर कुछ लगाम लगाने को मजबूर होना पड़ा। इन संगठनों की गतिविधियों में कमी आई। जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन और अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद कश्मीर में अलगाववादी और जिहादी मानसिकता वाले युवकों व उनके समर्थकों का भी पाकिस्तान, लश्कर,जैश व हिजबुल से किसी हद तक मोह भंग हुआ है। सुरक्षाबलों के करारे प्रहार ने उनका मनोबल तोड़ दिया।
यही कारण है कि निराश कमांडरों को जाेड़े रखने के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने टीआरएफ, टीएमआइ और गजनवी फोर्स जैसे संगठनों को जन्म दिया। यह संगठन एक तरह से लश्कर व जैश के फ्रंट है। इनका कैडर उनसे ही निकला है। ऐसे में रियाज नाइकू को मार गिराने के बाद हिजबुल के लिए संभलना आसान नहीं है। खास बात यह है कि जमात-ए-इस्लामी और पाकिस्तान में बैठे उनके आका क्या रुख अपनाते हैं, इस पर भी काफी निर्भर करेगा। सुरक्षाबल भी संगठन के सफाए का यह मौका चूकना नहीं चाहेंगे।